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कविता-ठहराव

कविता 


 ठहराव 



ठहराव -कविता



मस्त -विरक्त,

मानव एक,

स्थितियां अलग ,अलग सोच,

वशीभूत मानव ,सोचता ,विचरता विचारो में ,

ढूंढ़ता आश्रय विचारो में,

जो दे उसे ठहराव ,संतोष | 


दौड़ ठहराव की,

पाता कोई छोड़ने से,

पाता कोई पाने से,

कहता हर कोई,

मार्ग मेरा श्रेष्ठ,

पाया क्या उसने,

उस मार्ग से अपना लक्ष्य ?


पर सच क्या?

सत्य-अन्वेषेण उचित क्या?

सत्य है क्या?

या दौड़ है यह,

खुद के संतोष की,

अनुत्तरित प्रश्न यह,

उत्तर ढूंढ़ता खुद से,

अचंभित मानव | 

---------------------राकेश----------------

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