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कविता - Sach-Jhoot( सच-झूठ )


कविता


सच-झूठ

Sach-Jhoot

#Sach-Jhoot#

सत्य छिपा- छिपा सा ,
खोजता निकास,ताकि हो प्रकट ,
 बता सके,उसका भी है अस्तित्व ,
पर ,पा ना,पाता, कोई उसका ठोर ,
दब जाता मानो, परत-दर-परत ,


JHOOT-KA-SHOR
KAVITA-SACH-JHOOT

झुठ की चादर से ,

आश्चर्य ऐसा ? अचंभा ऐसा ?,

जिसमे वशीभूत मानव ,मान लेता ,

झुठ को सच कई बार | 

अजब है ये खेल,गजब है ये मेल ,

सब कुछ उलट-पुलट ,

अजीब है यह मेल| 

रैली पर रैली ,

बड़े-बड़े वादे ,मुस्कुराते नेता ,

हर सवाल का जबाब हाँ में देते नेता ,

भर दूंगा में पेट ,चिंता करो मत तुम ,

यह विश्वास दिलाते, नेता ,

जानते सच ,होश में जनता पर ,

हर बार झुठ को सच मनवाते नेता ,

जय-जय नेता जी की कहलवाते नेता |

अचंभित ,आश्चर्य में डूबा मैं ,

चाहता करे क्रान्ति हम सब ,

मिटा डाले वबंडर झूठ का ,

सच की फुहार से | 

जुड़े हम सब ,

काट डाले बेड़िया झूठ की ,

ताकि उदय हो सूरज सच का |  

आओ मिलकर करे स्थापित ,

राज्य, अब सच का | 

-राकेश शर्मा  

#सच-झूठ#


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