Poem- Ji-Ji
जी-जी
कविता
POEM-JI-JI |
जी-जी की र ट लगाते ,
कॉरपोरेट मे उच्च स्थान पाते ,
चापलूसी के रंगो मे रंगे ,
कहलाते यह चतुर खिलाडी |
बॉस ही भगवान है ,
बॉस ही महान है ,
बॉस बिना जग नश्वर है ,
बस बॉस सिर्फ बॉस ही मेरा सब-कुछ है |
धुन यही गुनगुनाते है ,
मैं महान ,मेरा बॉस मुझसे महान ;
और न कोई दूजा ,
भज मन बॉस ही सब कुछ ,
बाकी जग नश्वर और अजूबा |
मिलते ऐसे लोग टहलते ,
कॉर्पोरेट के गलिआरो में,
काम नहीं करते यह सब कहते ,
क्या कम है ? यह काम ,
वह कहते ;
यही काम ले जाता तरक्की के पथ पर ,दिलाता धन और ऊंचा पद ,
व्यर्थ कियों मेहनत करे ,
जब चलता हो काम निर्लज्जता से ,
जो देती इन निर्लज्जो को एक खोखली जिंदगी |
-राकेश
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