History of Junagarh Part-2
गतांग से आगे........
उसे दौर में कराची पाकिस्तान की राजधानी था नवाब को इसी शहर में पनाह दी गई इधर भारत की हुकूमत नवाब के महलों तक पहुंच चुकी थी लेकिन महल तो भुट्टो के हवाले था और भुट्टो समझ गए थे की जूनागढ़ हाथ से निकल चुका है| उधर नवाब ने भी कराची से दूतों को संदेश भेजा जिसमें उन्होंने साफ कहा था की उनकी प्रजा के साथ कोई भी खून खराब नहीं होना चाहिए इसीलिए शांतिपूर्ण ढंग से वो यानी की भुट्टो जूनागढ़ का भारत में विलय करवा दें| मित्रो,ऐसा नहीं था की नवाब को जूनागढ़ की जनता से प्रेम नहीं था पर उन्हें जनता की फिक्र थी, इतिहास बताता है की जूनागढ़ में मुस्लिम नवाब होते हुए भी कभी हैदराबाद या बंगाल की तरह यहां दंगे नहीं हुए कभी हिंदुओं को परेशान नहीं किया गया| लेकिन भुट्टो और जिन्ना ने नवाब मोहब्बत खान थर्ड का ऐसा ब्रेनवाश किया की उन्होंने इतना गलत फैसला कर लिया|
खैर 8 नवंबर को भुट्टो ने भारत सरकार से ये अपील की की वो जूनागढ़ को कब्जे में ले लें इसके बाद सरदार पटेल खुद यहां पहुंचे और उन्होंने लोगों से पूछा की जो भी भारत के साथ है वो हाथ ऊंचा कर दे लोगों ने पुरजोर तरीके से भारत का समर्थन किया| कुछ दिनों बाद जूनागढ़ और आसपास के रियासतों में फिर से वोटिंग हुई जिसे कवर करने के लिए इस बार इंटरनेशनल मीडिया भी मौजूद था दुनिया भर से आये रिपोर्टर्स ने देखा की कैसे जूनागढ़ की जनता खूब खुशी से वंदे मातरम के नारे लगा रही थी और भारत के पक्ष में वोट कर रही थी 2 लाख लोगों ने वोट दिए जिसमें सिर्फ 91 वोट पाकिस्तान के पक्ष में पड़े और पुरी दुनिया के सामने जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया|
उधर दीवान शाहनवाज भुट्टो की चाल बुरी तरह फेल हो गई थी और उसे भी पाकिस्तान भगाना पड़ा| नवंबर 1947 में भुट्टो पाकिस्तान पहुंचे लेकिन नवाब के उलट उन्हें बहुत बड़ी जमीन दी गई साथ ही उन्हें इस नए मुल्क की राजनीति में भी काफी अच्छी पोजीशन मिली | भुट्टो एक तेजतर्रार नेता थे और नवाब सीधे-साधे सही मायनो में मुर्ख थे| इसीलिए भुट्टो के आगे नवाब को किसी ने पूछा तक नहीं|
जिन और नवाबों ने भारत में अपने रियासत का विलय किया था उन्हें खुश करने के लिए भारत सरकार ने उन्हें कुल 34 विशेषाधिकार दिए| सरकार ने राजाओं का खजाना, महल और किले उनके पास छोड़ दिए| यहां राजाओं को किसी तरह का टैक्स नहीं देना पड़ता था और राजाओं को एक निश्चित रकम दी जाती थी इस रकम का भुगतान उसे टैक्स से होता था जो उन राजाओं की रियासतों से मिलता था राजाओं को यह गारंटी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 291 के तहत दी गई| लेकिन नवाब मोहब्बत खान तो अपने किले महल और बंगले जूनागढ़ में ही छोड़कर चले गए थे अगर वो भारत में रहते तो उन्हें करीब 2-3 लाख की रकम मिलती जो उसे दौर में कम से कम 50 करोड़ के बराबर होती, लेकिन पाकिस्तान में जाकर ना उनके पास महल बचे ना किले|
1959 में नवाब महावत खान ने आखिरी सांस ली उनकी जाने के बाद उनके बेटे जूनागढ़ के नवाब बने वो नवाब जिसके पास कोई रियासत ही नहीं थी| उधर दीवान शाहनवाज भुट्टो के बेटे जुल्फिकार अली भुट्टो बने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यानी की असली सत्ता तो दीवान के बेटे के हाथों में गई| यह साल था 1972 का जब भारत के प्रधानमंत्री इंदिरा ने जिन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े करके ईस्ट पाकिस्तान को बांग्लादेश बना दिया था| वही दीवान शाहनवाज भुट्टो के बेटे जुल्फिकार के बाद उनकी पोती बेनजीर भुट्टो भी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने और आज बेनजीर के बेटे बिलावल भुट्टो पाकिस्तान के प्रमुख पार्टी पाकिस्तान पीपल्स पार्टी के सुप्रीमो है वो पाकिस्तान के पीएम बनने की रेस में सबसे आगे हैं और विपक्ष के प्रमुख नेता भी है|
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Junagarh ka Guru Gorakhnath Temple |
आज उन्हें जो पेंशन मिलती है वो चपरासी की सैलरी से भी कम है वही बिलावल भुट्टो 150 करोड़ के मलिक हैं उनके पास दुबई में दो लग्जरी मिला है 6 लग्जरी गाड़ियां हैं करोड़ रुपए के हथियार और घोड़े हैं और वो पाकिस्तान के सबसे अमीर संसद है| वही भावी नवाब तो सिर्फ नाम के ही नवाब रह गए है| हालांकि यह हाल सिर्फ भावी नवाबों का नहीं है बल्कि भारत छोड़कर पाकिस्तान में बसने वाले हर एक नवाब के परिवार की दशा ऐसी ही है| साल 1971 में पाकिस्तान की सरकार ने नवाबों का रॉयल स्टेटस हमेशा के लिए खत्म कर दिया, अब ये नवाब नवाब भी ना रहे इसीलिए जूनागढ़ के नवाब का दुख अब भी कई बार छलक ही जाता है वो बताते हैं की जूनागढ़ में विलय से पहले जिन्ना ने उनके दादा नवाब थर्ड को बड़े-बड़े सपने दिखाए थे, इसीलिए वो अपने हिंदू बहुल रियासत को पाकिस्तान में मिलाने के लिए राजी हुए थे|
लेकिन पाकिस्तान में आने के बाद उनके परिवार को पुरी तरह दरकिनार कर दिया गया| आज जहां एक तरफ सिंधिया,गायकवाड,निज़ाम और भारत में शामिल होने वाले अलग-अलग राज्य घरानों और रियासतों के राजाओं के पास उनके पूर्वजों के महल और किले तो है ही साथ ही वे भारत के राजनीति में भी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं वही दूसरी तरफ पाकिस्तान जाने वाले नवाबों और निजाम की उनके अपने अपने देश में ना कोई पूछ है ना कोई कद्र| लेकिन अब यह लोग कर भी क्या कर सकते हैं ठगा हुआ सा महसूस करने के अलावा इनके पास कोई चारा ही नहीं है|
नवाब मोहब्बत खान थर्ड अगर समझदारी से काम लेते और सही फैसला लेते तो उनका इतना बुरा हाल ना होता| यही कारण है की आज उनके परिवार के लोग अपमान का घूंट पीकर पाकिस्तान में बैठे हैं जो कभी जूनागढ़ को पाकिस्तान का हिस्सा बताते थे| जिन नवाबों ने अपने लोगों को अपने ही देश को ठगने की कोशिश की आखिरकार वो खुद पाकिस्तान ठगे गए खैर जूनागढ़ के भारत में विलय और उसके बाद की कहानी को हमने आपको विस्तार से समझा दी है,मित्रो, उम्मीद है की यह स्टोरी आपको जरूर पसंद आई होगी,अपने विचार जरुर साझा करे|
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